छोटी सी दुकान में खैनी बेची, गरीबी की मार सहते हुए पढ़ाई की, मेहनत के दम पर बने IAS

अगर इंसान के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो वह निरंतर मेहनत करके असंभव को भी संभव बना सकता है। इस दुनिया में हर किसी का सपना होता है कि वह अपनी जिंदगी में एक बड़ा मुकाम हासिल करे परंतु सिर्फ सपने देखने से ही मंजिल नहीं मिलती है। इसके लिए जीवन में मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है।

जो व्यक्ति राह में आने वाली मुश्किलों का सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ता रहता है उसको एक ना एक दिन कामयाबी जरूर मिलती है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एक ऐसे जिद्दी इंसान की कहानी के बारे में बताने वाले हैं जिसने अपनी जिद के दम पर वह हासिल कर लिया जिसका उसने सपना देखा था।

जी हां, हम आज जिस शख्स की कहानी बता रहे हैं उनका नाम निरंजन कुमार हैं, जिन्होंने अपने जीवन में गरीबी सहते हुए अपनी मेहनत के दम पर आईएएस बनने का अपना सपना साकार किया। तो चलिए जानते हैं आईएएस निरंजन कुमार की सफलता की कहानी…

छोटी सी दुकान में खैनी बेची, गरीबी की मार सहते हुए पढ़ाई की, मेहनत के दम पर  बने IAS - The Digital Akhbar

पिता के साथ छोटी सी दुकान में बेची खैनी: निरंजन कुमार बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं। निरंजन कुमार के घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। निरंजन कुमार के पिताजी का नाम अरविंद कुमार है, जिनकी एक छोटी सी खैनी की दुकान थी और इसी दुकान से जो भी कमाई होती थी, उससे घर परिवार का पेट पालते थे। ऐसी स्थिति में अपने बेटे को अधिकारी बनते देखना उनके लिए एक सपने जैसा ही था।

पिता के साथ एक छोटी सी दुकान में खैनी बेची, गरीबी से जूझते हुए पढ़ाई की और बने  IAS अधिकारी: प्रेरणा

जब कोरोना महामारी का कहर बरसा, तो उस दौरान खैनी की दुकान भी बंद हो गई। इसी बीच निरंजन कुमार के पिताजी की सेहत भी खराब हो गई थी, जिसकी वजह से उनकी दुकान फिर कभी नहीं खुली। इस छोटी सी दुकान से हर महीने सिर्फ ₹5000 ही कमाई हो पाती थी, जिससे घर का गुजारा चलता था।

निरंजन कुमार अपने पिताजी की मदद करना चाहते थे, जिसके चलते वह अपने पिता के साथ इस छोटी सी खैनी की दुकान पर बैठते थे। जब उनके पिताजी कहीं बाहर जाते थे, तो वही इस दुकान को संभाला करते थे।

मुश्किल परिस्थितियों में भी नहीं हारी हिम्मत: जब निरंजन कुमार के पिताजी की खैनी की दुकान बंद हो गई तो ऐसी स्थिति में घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ गई। इस कठिन परिस्थिति में परिवार के लिए अपनी जिंदगी जी पाना बहुत मुश्किल हो रहा था परंतु निरंजन कुमार के परिवार ने कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ा। भले ही जीवन में बहुत सी कठिनाइयां आई परंतु उनके परिवार ने इन कठिनाइयों को निरंजन के राह का रोड़ा नहीं बनने दिया।

निरंजन कुमार की शिक्षा पर परिवार ने हमेशा ही ध्यान दिया। साल 2004 में जवाहर नवोदय विद्यालय रेवर नवादा से मैट्रिक की परीक्षा जब निरंजन कुमार ने पास कर ली, तो उसके बाद उन्होंने 2006 में साइंस कॉलेज पटना से इंटर पास की। इसके बाद उन्होंने बैंक से चार लाख का लोन लिया और IIT-ISM धनबाद से माइनिंग इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।

निरंजन कुमार को साल 2011 में धनबाद के कोल इंडिया लिमिटेड में असिस्टेंट मैनेजर की जॉब मिल गई। जो भी इस नौकरी से वह कमाते थे उससे उन्होंने अपना लोन भरा।

सपना किया साकार: निरंजन कुमार एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनके घर की स्थिति कैसी है वह उनको भली-भांति ज्ञात था। निरंजन कुमार को यह बात अच्छी तरह से पता थी कि उनके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं है कि वह दो बेटों और एक बेटी की शिक्षा की जिम्मेदारी उठा सकें।

निरंजन कुमार ने नवादा के जवाहर नवोदय विद्यालय में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा दी थी क्योंकि यहां पर उनकी शिक्षा मुफ्त होने वाली थी और उन्होंने परीक्षा पास भी की। निरंजन कुमार के आगे गरीबी पहाड़ की तरह खड़ी थी परंतु उन्होंने किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानी।

निरंजन कुमार ने साल 2017 में पहली यूपीएससी की परीक्षा दी. इस परीक्षा में उन्हें 728वां रैंक मिला। लेकिन निरंजन जानते थे कि वह इससे भी बेहतर कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने फिर दोबारा प्रयास किया। उन्होंने साल 2020 में दूसरे प्रयास के साथ 535वां रैंक हासिल किया। इस तरह उन्होंने अपना सपना साकार कर लिया।

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