मिठाई का नाम लेते ही एक बार के लिए हर किसी के मुँह में पानी आ जाता है। लेकिन राजस्थान के चूरू शहर के पेड़े का स्वाद सबसे अलग है।इन पेड़ो का स्वाद खाड़ी देशो के अलावा यूरोप के कई देश भी दीवाने है। काफी वर्षो पहले चूरू शहर के कुम्भाराम सैनी ने ये पेड़े बनाने की कारीगरी कोलकाता से सीखकर आए थे।
दिखने में सामान्य-सा है लेकिन इस पेड़े का स्वाद ऐसा है कि जिसने एक बार चख लिया वह कायल हो जाता है। त्योहारी सीजन में तो इसकी मांग ओर बढ़ जाती है।चूरू रेलवे स्टेशन पर दुकान के संचालक मनीष सैनी ने बताया कि उनके दादा कुम्भाराम सैनी व्यवसाय के लिए कोलकाता गए थे।
वर्ष 1967 में बंगाली कारीगरों से पेड़े बनाने सीखे थे। इसके बाद उनके दादा चूरू आ गए।इस दौरान उनकी रेलवे में नौकरी लग गई लेकिन नौकरी उनको रास नहीं आई तो उन्होंने रेलवे स्टेशन के पास मिठाई की दुकान शुरू कर दी।
मनीष ने बताया कि जब दादा कुम्भाराम सैनी ने पेड़े बनाने शुरू किए तो लोगो को काफी पसंद आए और धीरे-धीरे इसकी ख्याति फैलने लगी।मनीष सैनी ने बताया कि पेड़े दो प्रकार के बनाए जाते है। एक छोटा पेड़ा जो पूजन में काम लिया जाता है।
दूसरा बड़ा पेड़ा होता है जो खाने में काम आता है। छोटा पेड़ा खासतौर पर पूजा, मांगलिक कार्यो आदि के लिए बनाया जाता है।सैनी ने बताया कि कई लोग काम के लिए दुबई, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया लोग ले जाने लगे। ऐसे में इन देशों के लोगों को भी ये पेडे़ अच्छे लगे।
ऐसे में विदेश में रहने वाला जब कोई चूरू आता है तो लौटते वक्त पेड़े लाने के लिए जरूर कहता है।प्रतिदिन करीब 50 किलो पेड़ा तैयार होता है। लेकिन हालत यह है कि शाम तक एक भी पेड़ा नहीं बचता।