राजस्थान के इन भाइयों ने पत्थर तोड़कर छोटे भाई को करवाई तैयारी, अब छोटा भाई बना सरकारी टीचर

कहा जाता है कि मुश्किलें इंसान की परीक्षा लेने के लिए होती है। जो इन मुश्किलों को पार कर लेता है उसे सफलता का फल जरूर मिलता है।

ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजस्थान के बाड़मेर जिले के कालबेलिया समाज के एक युवा मीठाराम ने।

छोटी उम्र में भी माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद विपरीत हालातो में रहकर पढाई जारी रखने वाला ये युवा अब टीचर बनकर युवा पीढ़ी को शिक्षित करता नजर आएगा।

मीठाराम को इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके बड़े भाइयो का बहुत योगदान है जिन्होंने कड़ी धुप में पत्थर तोड़कर मजदूरी करके अपन छोटे भाई को सहयोग किया ताकि उसकी पढाई नहीं रुके।

वैसे कालबेलिया समाज का नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है कि कानों मे कुंडल, हाथों व गले में रूद्राक्ष की माला और भगवा वस्त्र धारण किया हुआ।

लेकिन इसी तस्वीर को बदलने के काम किया है युवा मीठाराम ने। मीठाराम ने इतिहास की  परंपराओं को तोड़कर नया इतिहास लिखा है।

मीठाराम बताते है कि उन्होंने कठिन परिस्थितियों के बाद यह मुकाम हासिल किया है।

एक समय में उनके परिवार के रोजगार नहीं था तो घर से दूर जाकर मजदूरी की और अपनी पढाई जारी रखी।

मीठाराम के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया था। घर में कमाने वाला कोई नहीं था और माँ पर परिवार को पालने की जिम्मेदारी आ गई।

बड़े 2 भाइयों ने पत्थर तोड़-तोड़कर छोटे भाई को बनाया टीचर, संघर्ष से मिली  सफलता की अनूठा दास्तां - unique success story of mitharam erelder 2  brothers broke stone and made younger

लेकिन पिता के 9 वर्षो बाद माँ का भी देहांत हो गया। इसके बाद परिवार का बोझ बड़े भाई  खमिशनाथ और किशननाथ के कंधों पर आ गया।

बड़े भाइयों खमिशनाथ और किशननाथ ने दिन रात मेहनत मजदूरी करके छोटे भाई की पढाई जारी रखी।

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एक लम्बे संघर्ष के बाद एक भाई प्रेमनाथ सब इंस्पेक्टर(SI) बन गया तो छोटे भाई मीठनाथ प्राइमरी टीचर के पद पर चयन हुआ।

शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े कालबेलिया समाज के युवाओ ने विपरीत परिस्थितियों में रहकर नई पहचान बनाकर अपने कालबेलिया समाज का नाम रोशन किया है।

(Disclaimer: यह लेख इंटरनेट पर मौजूद सामान्य मान्यताओं के आधार पर तैयार किया गया है Dailytalk.online इनकी पुष्टि नहीं करता है)

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