भूमिगत जलस्तर नीचे चले जाने से किसान परम्परागत खेती से हटकर अन्य तरह की लाभदायक फसलों का उत्पादन कर अपनी तकदीर बदल रहे हैं। राजस्थान के सीकर जिले की ग्राम पंचायत बागरियावास स्थित नावलाई गांव में कई किसान खेतों में खरीफ और रबी की सामान्य फसलों के बजाय फूलों की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यहां के किसान महज हजारे फूलों की बड़े स्तर पर खेती कर अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बन रहे हैं।
गिरते भूजल स्तर को देखते हुए लोगों ने फूलों की खेती करना शुरू कर दिया है। किसान फूलों की खेती से कम क्षेत्रफल में अधिक उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। पिछले दस सालों में क्षेत्र में भूमिगत जलस्तर की कमी के चलते लोगों के लिए अनाज की खेती फायदे का सौदा नहीं रही।
कम पानी व कम लागत में अधिक पैदावार व आमदनी से किसानों का ध्यान साग-सब्जी व फूलों की तरफ जाने लगा है। इसी का परिणाम है कि नावलाई के किसान परिवारों ने फूलों के उत्पादन की ओर रुख कर लिया है।
यहाँ प्रत्येक सीजन में हजारे के फूलों की खेती की जाती है। हजारे की खेती करने वाले किसान राजेश कुमार ने बताया कि हजारे की खेती में लागत कम है। फूलों के उत्पादन से अच्छे दाम मिल जाते हैं, और इसकी मांग पूरे वर्ष ही विभिन्न कार्यक्रमों के चलते बनी रहती है।
हर त्योहार व शादी समारोह के दौरान दिल्ली व जयपुर के व्यापारी यहाँ फूल खरीदने आते हैं। किसान बाबूलाल सैनी ने बताया कि कम लागत में अधिक उत्पादन व आय के चलते यहां के किसानों का फूलों की खेती के प्रति रूझान बढ है।
ये फूल अलग-अलग रंगों के हैं। बाजार में हल्के फूल 40 रुपये प्रतिकिलो तथा अच्छे फूल 70-80 रुपये किलो के भाव से बिकते हैं। त्योहारों और वैवाहिक कार्यक्रमों के दौरान मांग बढऩे के साथ-साथ इनकी कीमत भी प्रतिकिलो के हिसाब से बढ़ जाती है। सालभर में तीन-चार बार के फसल उत्पादन से एक किसान औसतन दो-तीन लाख रुपए का मुनाफा कमा लेते है। सम्पूर्ण गांव में सालभर में करीब एक करोड़ रुपए का उत्पादन होता है ।
वर्षभर करते खेती
किसानों के मुताबिक गेंदा की हजारा प्रजाति की फसल वर्षं भर की जा सकती है। एक फसल के खत्म होते ही दूसरी फसल के लिए पौध तैयार कर ली जाती है। इस खेती में जहां लागत काफी कम होती हैं, वहीं आमदनी काफी अधिक होती है। गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। इसकी फसल दो महीने में प्राप्त की जा सकती है।
एक बीघा में लागत करीब तीन-चार हजार रुपये होती है, वहीं सिंचाई की भी अधिक जरूरत नहीं होती। मात्र दो से तीन सिंचाई करने से ही खेती लहलहाने लगती है, जबकि पैदावार पांच क्विंटल तक प्रति बीघा हो जाती है। वहीं किसानों को अनाज की खेती के बजाय फूलों की खेती में कम मेहनत करनी पड़ती है। फसल पर किसी प्रकार के खाद व दवा के छिडक़ाव की आवश्यकता नहीं रहती।
बाजार में अब वर्षभर हजारे के फूलों की मांग रहती है। त्योहारों, प्रतिष्ठानों व घरों की सजावट सहित वैवाहिक कार्यक्रमो में फूलों की मांग रहती है, मंदिरों पर पूजन के लिए भी फूलों की जरूरत रहती है। इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रमों में भी फूलों की मांग बनी रहती है। ऐसे में हजारे की खेती करना काफी फायदे का सौदा है।